Amazing Facts in Hindi
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मृत शरीर पानी में क्यों तैरता है?
किसी भी वस्तु का पानी पर तैरना उसके विशिष्ट गुरुत्व (Specific gravity) पर निर्भर है। पानी का विशिष्ट गुरुत्व 1.000 है। जिस वस्तु का विशिष्ट गुरुत्व पानी से अधिक होगा वो पानी में डूब जायेगी।
जब इंसान पानी में तैरता है और सामान्य रूप से सांस लेता है या उसके फेफड़ों में हवा रहती है तब उसके शरीर का विशिष्ट गुरुत्व पानी से कम (around 0.985) होता है और वह नहीं डूबता।
यदि वह पानी में डूबने लगता है तब उसके फेफड़ों में पानी भरने लगता है और इस अवस्था में उसके शरीर का विशिष्ट गुरुत्व पानी से ज्यादा (around 1.026) हो जाता है और वह डूब जाता है।
जब इंसान पानी में डूब जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तब उसके शरीर में जीवाणु बढ़ने (Bacterial proliferation) लगते हैं और शरीर को गलाने (Decomposition) लगते हैं। इस अवस्था में शरीर के अंदर ऊतकों में और पेट की आंतों में गैस बनने लगती है। इस अवस्था में शरीर फूल जाता है, शरीर का विशिष्ट गुरुत्व भी पानी से कम हो जाता है और शरीर पानी में तैरने लगता है।
हम पानी में सांस क्यों नहीं ले पाते हैं, जबकि पानी में भी ऑक्सीजन होता है?
- पानी मे घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा केवल 0.001 ℅ होती है जबकि हम जो स्वास लेते है उस हवा में लगभग 21 % होती है।
- हमारे फेफड़े (Lungs) हवा के द्वारा स्वास लेने के लिये बने है पानी में नहीं
बस यही मुख्य दो कारण है जिसके कारण पानी मे स्वास नही ले सकते है।
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हवा कैसे चलती है, और क्यों?
तापमान के अलावा भौगोलिक स्थिति, पहाड़, धरती के अपने अक्ष पर घूमने आदि से भी हवा की चाल प्रभावित होती है। धरती के पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमने के कारण पछुआ हवाएं चलती हैं।
आपने खुले वातावरण में हवा के झोंके तो अनुभव किए ही होंगे। गर्मी के मौसम में तो हवा का चलना बहुत अच्छा लगता है लेकिन क्या आपको पता है कि हवा के ये झोंके कैसे बनते हैं या हवा कैसे चलती है? चलिए आज इसी बारे में बात करते हैं।
यह तो आप जानते ही हो कि जब सूरज की धूप धरती पर पड़ती है तो वहां की जमीन और हवा गर्म होने लगती है। तापमान बढ़ने से ऐसी जगहों पर हवा फैलने लगती है और उसका घनत्व भी कम हो जाता है।
गर्म हवा ठंडी हवा के मुकाबले हल्की होती है इसलिए वह ऊपर की तरफ उठने लगती है। इस स्थिति में ऐसे स्थानों की वायु का दबाव कम हो जाता है।
यह एक तरह का 'खालीपन' होता है, जिसे भरने के लिए अधिक दबाव वाले यानी ठंडे स्थानों से हवा आने लगती है। भले ही कई बार ऐसी हवाओं का 'ठंडापन' हमें महसूस नहीं हो पाता हो लेकिन असल में यह हवा अपेक्षाकृत ठंडी व भारी ही होती है।
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गर्म वातावरण में आने से कुछ समय बाद यह हवा भी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। बस, तापमान में आए इस बदलाव के कारण ही हवाओं का यह आना-जाना लगा रहता है। जिसे हम हवा का चलना या बहना कहते हैं।
धरती का आकार गोल होने के कारण इस पर हर जगह सूरज की किरणें बराबर नहीं पड़तीं। धरती पर सूरज के सामने रहने वाले भाग में तो किरणें सीधी पड़ती हैं, लेकिन अन्य भागों में ये किरणें तिरछी पड़ती हैं|
ऐसे में जहां किरणें सीधी पड़ती हैं वह भाग तो ज्यादा गर्म हो जाता है लेकिन दूसरे हिस्से अपेक्षाकृत कुछ कम गर्म होते हैं या कहें कि कुछ ठंडे रह जाते हैं।
अलग-अलग तापमान वाले इन इलाकों से हवा को गति मिलती है। समुद्र के नजदीक भी ऐसा ही होता है, क्योंकि पानी जमीन की तुलना में देर से ठंडा या गर्म होता है।
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समुद्र के पास वाली जगहों में दिन के समय सूरज की गर्मी से जमीन गर्म हो जाती है। जिससे हवा हल्की होकर ऊपर उठने लगती है और उसकी जगह लेने के लिए समुद्र के पानी के संपर्क से ठंडी रहने वाली हवा जमीन की तरफ आने लगती है।
रात के समय यह सारी प्रक्रिया बिल्कुल उलट जाती है यानी जमीन समुद्र के पानी के मुकाबले ज्यादा ठंडी होने लगती है जिससे हवा भी जमीन से समुद्र की तरफ चलने लगती है।
तापमान के अलावा भौगोलिक स्थिति, पहाड़, धरती के अपने अक्ष पर घूमने आदि से भी हवा की चाल प्रभावित होती है। धरती के पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमने के कारण पछुआ हवाएं चलती हैं। इसी तरह, उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं तरफ व दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं तरफ चलती हैं।
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