जानिए वानर राज बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे? Amazing Facts in Hindi - All about Facts

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18.9.20

जानिए वानर राज बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे? Amazing Facts in Hindi

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रामायण तो आप सभी ने देखी होगी उसी का एक पात्र जिनका नाम बाली है, आज हम उनके बारे में कुछ बातें जानेंगे जो आपको बिल्कुल भी पता नहीं होंगी!


बाली के बारे में कहा जाता है की वो बहुत ही शक्तिशाली था उसने लंका के राजा रावण को अपने बाँहों में दबा कर महीनो भर उड़ता रहा था!

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बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे।

बाली और सुग्रीव दोनों के पिता के विषय में कहा जाता है कि बालि के पिता देवराज इंद्र थे जबकि सुग्रीव के पिता सूर्यदेव थे।

लेकिन इनकी माता एक थी। इनकी माता के बारे में कथा है कि वह पुरुष से स्त्री बनी थी। इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कहानी है-

ऋक्षराज नामक एक शक्तिशाली नर वानर था जो ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था। अपने बल के अहंकार में वह खूब उदंडता किया करता था। एक दिन उदंडता करते हुए वह एक तालाब में कूद गया। ऋक्षराज को पता नहीं था कि उस तलाब को शाप है कि जो भी नर उसमें डुबकी लगाएगा वह सुंदर स्त्री बन जाएगी।

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ऋक्षराज जब तालाब से निकले तो स्त्री बन चुके थे और अपने स्त्री रूप को देखकर असहज महसूस कर रहे थे।

ऋक्षराज अभी अपने रूप को लेकर उलझन में ही थे कि उस बीच देवराज इंद्र की नजर उन पर गई और वह पुरुष से स्त्री बनी ऋक्षराज के अनुपम सौंदर्य को देखकर कामाशक्त हो गए और इनके संबंध से एक बालक का जन्म हुआ जो बाली कहलाया।

देवराज इंद्र की तरह सूर्य ने भी जब स्त्री बनी ऋक्षराज को देखा तो मोहित हो गए। ऋक्षराज के साथ इनके संबध से एक बालक का जन्म हुआ जो सुंदर ग्रीवा वाला होने के कारण सुग्रीव कहलाया।

वानर से स्त्री बनी उस महिला ने ऋष्यमूक पर्वत पर रहकर ही इंद्र और सूर्यदेव से उत्पन्न अपने पुत्रों बाली और सुग्रीव का पालन-पोषण किया।

बड़ा भाई बालि इन्द्र का पुत्र और छोटा भाई सूर्य का पुत्र सुग्रीव था। बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीव नाम पड़ा।

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बाली वानर थे पर उनकी धर्मपत्नी मनुष्य थी ऐसा क्यों?

बाली के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ 'ऋक्ष' था। बाली के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। बालि का एक पु‍त्र था जिसका नाम अंगद था। बाली गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी।

धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना नहीं थी। वह भगवान सूर्य का उपासक और धर्मपरायण था। हालांकि उसमें दूसरे कई दुर्गुण थे जिसके चलते उसको दुख झेलना पड़ा।

आज से हजारों वर्षों पूर्व देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान 14 मणियों में से एक अप्सराएं भी थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। बाली और सुषेण दोनों समुद्र मंथन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी।

तारा को लेकर दोनों में युद्ध की स्थिति निर्मित हो चली तब भगवाण विष्णु ने कहा कि अच्छा दोनों तारा के पास खड़े हो जाओ। बाली तारा के दाहिनी तरफ तथा सुषेण उसके बाईं तरफ़ खड़े हो गए।

तब श्रीविष्णु ने कुछ देर दोनों को देखने के बाद फैसला सुनाया कि धर्म नीति अनुसार विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ उसका होने वाला पति तथा बाईं तरफ कन्यादान करने वाला पिता खड़ा होता है। अतः बाली तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किया जाता है। इस तरह इस फैसले के तहत बाली ने सुंदर अप्सरा से विवाह किया

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राम जी ने बाली को छुप के क्यों मारा था?

बाली के पास एक अनोखी शक्ति थी की युद्ध के दौरान सामने वाले योद्धा की आधी शक्ति के अंदर आ जाती थी जिस कारण से भगवान राम ने छिपकर बाली का वध किया।

 इसे हम छल मान सकते हैं भगवान राम अविनाशी नहीं थे इसीलिए इनको अपनी प्राण रक्षा के लिए छल करना पड़ा!

 अपने इस फल को भोगने के लिए द्वापर युग में श्री कृष्ण रूप में राम जी आए तथा बाली वाली आत्मा शिकारी बनी जिसने श्री कृष्ण का वध किया यह तीन लोग के देवता भी अपने तीन ताप को खत्म नहीं कर सकते।

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