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18.9.20

जानिए वानर राज बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे? Amazing Facts in Hindi

सितंबर 18, 2020 0
जानिए वानर राज बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे? Amazing Facts in Hindi

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रामायण तो आप सभी ने देखी होगी उसी का एक पात्र जिनका नाम बाली है, आज हम उनके बारे में कुछ बातें जानेंगे जो आपको बिल्कुल भी पता नहीं होंगी!


बाली के बारे में कहा जाता है की वो बहुत ही शक्तिशाली था उसने लंका के राजा रावण को अपने बाँहों में दबा कर महीनो भर उड़ता रहा था!

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बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे।

बाली और सुग्रीव दोनों के पिता के विषय में कहा जाता है कि बालि के पिता देवराज इंद्र थे जबकि सुग्रीव के पिता सूर्यदेव थे।

लेकिन इनकी माता एक थी। इनकी माता के बारे में कथा है कि वह पुरुष से स्त्री बनी थी। इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कहानी है-

ऋक्षराज नामक एक शक्तिशाली नर वानर था जो ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था। अपने बल के अहंकार में वह खूब उदंडता किया करता था। एक दिन उदंडता करते हुए वह एक तालाब में कूद गया। ऋक्षराज को पता नहीं था कि उस तलाब को शाप है कि जो भी नर उसमें डुबकी लगाएगा वह सुंदर स्त्री बन जाएगी।

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ऋक्षराज जब तालाब से निकले तो स्त्री बन चुके थे और अपने स्त्री रूप को देखकर असहज महसूस कर रहे थे।

ऋक्षराज अभी अपने रूप को लेकर उलझन में ही थे कि उस बीच देवराज इंद्र की नजर उन पर गई और वह पुरुष से स्त्री बनी ऋक्षराज के अनुपम सौंदर्य को देखकर कामाशक्त हो गए और इनके संबंध से एक बालक का जन्म हुआ जो बाली कहलाया।

देवराज इंद्र की तरह सूर्य ने भी जब स्त्री बनी ऋक्षराज को देखा तो मोहित हो गए। ऋक्षराज के साथ इनके संबध से एक बालक का जन्म हुआ जो सुंदर ग्रीवा वाला होने के कारण सुग्रीव कहलाया।

वानर से स्त्री बनी उस महिला ने ऋष्यमूक पर्वत पर रहकर ही इंद्र और सूर्यदेव से उत्पन्न अपने पुत्रों बाली और सुग्रीव का पालन-पोषण किया।

बड़ा भाई बालि इन्द्र का पुत्र और छोटा भाई सूर्य का पुत्र सुग्रीव था। बालों पर तेज गिरने से बालि और ग्रीवा पर तेज गिरने से सुग्रीव नाम पड़ा।

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बाली वानर थे पर उनकी धर्मपत्नी मनुष्य थी ऐसा क्यों?

बाली के पिता का नाम वानरश्रेष्ठ 'ऋक्ष' था। बाली के धर्मपिता देवराज इन्द्र थे। बालि का एक पु‍त्र था जिसका नाम अंगद था। बाली गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। उसमें उड़ने की शक्ति भी थी।

धरती पर उसे सबसे शक्तिशाली माना जाता था, लेकिन उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना नहीं थी। वह भगवान सूर्य का उपासक और धर्मपरायण था। हालांकि उसमें दूसरे कई दुर्गुण थे जिसके चलते उसको दुख झेलना पड़ा।

आज से हजारों वर्षों पूर्व देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान 14 मणियों में से एक अप्सराएं भी थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। बाली और सुषेण दोनों समुद्र मंथन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी।

तारा को लेकर दोनों में युद्ध की स्थिति निर्मित हो चली तब भगवाण विष्णु ने कहा कि अच्छा दोनों तारा के पास खड़े हो जाओ। बाली तारा के दाहिनी तरफ तथा सुषेण उसके बाईं तरफ़ खड़े हो गए।

तब श्रीविष्णु ने कुछ देर दोनों को देखने के बाद फैसला सुनाया कि धर्म नीति अनुसार विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ उसका होने वाला पति तथा बाईं तरफ कन्यादान करने वाला पिता खड़ा होता है। अतः बाली तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किया जाता है। इस तरह इस फैसले के तहत बाली ने सुंदर अप्सरा से विवाह किया

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राम जी ने बाली को छुप के क्यों मारा था?

बाली के पास एक अनोखी शक्ति थी की युद्ध के दौरान सामने वाले योद्धा की आधी शक्ति के अंदर आ जाती थी जिस कारण से भगवान राम ने छिपकर बाली का वध किया।

 इसे हम छल मान सकते हैं भगवान राम अविनाशी नहीं थे इसीलिए इनको अपनी प्राण रक्षा के लिए छल करना पड़ा!

 अपने इस फल को भोगने के लिए द्वापर युग में श्री कृष्ण रूप में राम जी आए तथा बाली वाली आत्मा शिकारी बनी जिसने श्री कृष्ण का वध किया यह तीन लोग के देवता भी अपने तीन ताप को खत्म नहीं कर सकते।

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25.8.20

जानिये क्यों मनाया जाता है दिवाली का पर्व, प्रचलित हैं ये तीन पौराणिक कथाएं!

अगस्त 25, 2020 0
जानिये क्यों मनाया जाता है दिवाली का पर्व, प्रचलित हैं ये तीन पौराणिक कथाएं!

Happy Diwali 2020

Happy Diwali 2020
Happy Diwali

Diwali 2020कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. पूरे देश में इसे प्रकाश और रोशनी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. दिवाली दरअसल एक दिन का नहीं, बल्कि 5 दिनों का त्योहार है. धनतेरस से ही इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है. धनतेरस, नरक चतुदर्शी, अमास्या, शुक्ल प्रतिपदा और भाई दूज तक दिवाली का त्योहार मनाया जाता है.

दीप जलाते, पटाखे फोटते या एक दूसरे से त्यौहार मिलते वक्त अक्सर हमें ख्याल आता है कि आखिर दिवाली क्यों मनाई जाती है? इसका महत्व क्या है और क्या है इसके पीछे की कहानी? हम आपको बताने जा रहे हैं दिवाली के बारे में कुछ रोचक बातें और प्रचलित कहानियां.

जानिये क्यों मनाया जाता है दिवाली का पर्व, प्रचलित हैं ये तीन पौराणिक कथाएं


कथा-1ः
भगवान राम जब रावण को मारकर अयोध्या नगरी वापस आए तब नगरवासियों ने अयोध्या को साफ-सुथरा करके रात को दीपों की ज्योति से दुल्हन की तरह जगमगा दिया था. तब से आज तक यह परंपरा रही है कि कार्तिक अमावस्या के गहन अंधकार को दूर करने के लिए रोशनी के दीप प्रज्वलित किए जाते हैं.
Happy Diwali 2020
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   also read this:-Happy New Year हम क्यों मनाते है?                     
कथा-2ः
जब देवताओं और राक्षसोंं द्वारा समुद्र मंथन चल रहा था तब कार्तिक अमावस्या पर देवी लक्ष्मी क्षीर सागर (दूध का लौकिक सागर) से ब्रह्माण्ड मे आई थी. तभी से माता लक्ष्मी के जन्मदिन की उपलक्ष्य मे दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है.
कथा-3ः
दिवाली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाते हैं क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध किया था. नरकासुर एक पापी राजा था, यह अपने शक्ति के बल से देवताओं पर अत्याचार करता था और अधर्म करता था. उसने सोलह हजार कन्याओं को बंदी बनाकर रखा था. इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया. बुराई पर सत्य की जीत पर लोगोंं ने अगले दिन उल्लास के साथ दीपक जलाकर दीपावली का त्यौहार मनाया.
Happy Diwali 2020
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लक्ष्मी जी को धन की देवी और गणेश भगवान बुद्धि के देवता हैं. इस दिन इनके पूजन से बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है क्योंकि बुद्धि के बिना धन का कोई महत्व नहीं होता. इसीलिए कहा जाता है कि मां लक्ष्मी के घर आने के बाद अगर बुद्धि का उपयोग नहीं किया जाए तो लक्ष्मी जी को रोक पाना मुश्किल हो जाता है.
इसीलिए दीवाली की शाम को मां लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश जी की प्रतिमा रखकर दोनों की साथ में पूजा की जाती है. इस दिवाली आप भी भगवान गणेश और मां लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करके अपने घर में धन, बुद्धि और यश का वास करवा सकते हैं.

19.8.20

क्या आप जानते है हम Happy New Year क्यों मनाते है? Why We Celebrate Happy New Year

अगस्त 19, 2020 0
क्या आप जानते है हम Happy New Year क्यों मनाते है? Why We Celebrate  Happy New Year

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 क्या आप जानते है हम Happy New Year क्यों मनाते है?

हर बार की तरह इस बार भी सभी लोगों नए साल का जश्न मना रहे हैं। हो भी क्यों न, नया साल खुशियां, उमंग नई उम्मीदें और पार्टी करने जैसे तमाम नए बहाने लेकर आता है। ये भी कह सकते हैं कि अपनी खुशी का इजहार करने के लिए ये खास दिन होता है। लोग नए साल पर अपने सपनों को उड़ान देना चाहते हैं। बीती बातों को भूलकर नई शुरूआत करना चाहते हैं। इस उत्साह के बीच एक बात पर कभी गौर करना जरूरी है, कि एक जनवरी को नया साल क्यों सेलिब्रेट किया जाता है। इतना ही नहीं हमारे देश में नए साल का जश्न कितनी बार मनाया जाता है। शायद नहीं पता होगा...तो हम बताते हैं कि इसके पीछे की कहानी और इसके इतिहास के बारे में। 

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Happy New Year


पहले अपने देश के बारे में जान लेते हैं कि हमारे देश में कितनी बार नये साल का उत्सव मनाया जाता है। भारत में अलग-अलग धर्म हैं और इन सभी धर्मों में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है। पंजाब में नया साल बैशाखी के दिन मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में भी बैशाखी के आस-पास ही इस उत्सव को मनाया जाता है। महाराष्ट्र में मार्च-अप्रैल के महीने आने वाली गुड़ी पड़वा के दिन नया साल मनाया जाता है। गुजरात में इसको दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है। वहीं, इस्लामिक कैलेंडर में भी नया साल मुहर्रम के नाम से जाना जाता है।

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से, हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

जैन नव वर्ष

दीपावली के अगले दिन से, जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। इसी दिन से जैन समुदाय अपना नया साल मनाते हैं।

पंजाबी नव वर्ष

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पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है।

पारसी नव वर्ष 

क्या आप जानते है हम Happy New Year क्यों मनाते है?

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पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव मनाया जाता है। 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी।

ईसाई नव वर्ष 
1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। तब से 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं।

हर धर्म में अलग-अलग दिन और महीनों में नया साल मनाने की प्रथा है। लेकिन इनके बावजूद हम सभी 1 जनवरी को क्यों नया साल मनाते हैं? यहां आपको इसी सवाल का जवाब मिल जाएगा।

नए साल का उत्सव लगभग 4000 साल से भी पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था, जो कि वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव तभी मनाया जाता था। रोम के बादशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, तब विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया।

नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को होता है। अलग-अलग संस्कृतियों के अपने कैलेंडर और अपने नव वर्ष होते हैं। दुनिया के देश अलग-अलग समय पर नया साल मनाते हैं।

पहचान बढ़ाने का अच्छा मौका

नए साल को सेलिब्रेट करते समय बहुत से लोग अपने आस-पास के लोगों के साथ पार्टी करते हुए करीब आते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जान पहचान बढ़ाने के लिए ये अच्छा मौका है। इस मौके पर जान पहचान वालों के अलावा बहुत से अनजान लोग भी आपको बधाई देते हें। हर आने वाला साल अपने साथ ढेरों उतार-चढ़ाव लेकर आता है। जिनकी मदद से आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद मिलती है। 

Source:Jagran.com


23.7.20

हनुमान भक्त ज़रूर जानें 'हनुमान चालीसा' से जुड़े ये 5 फैक्ट्स 5 Interesting Facts about Hanuman Ji

जुलाई 23, 2020 0
हनुमान भक्त ज़रूर जानें 'हनुमान चालीसा' से जुड़े ये 5 फैक्ट्स 5 Interesting Facts about Hanuman Ji

                                                   All about Facts

सभी हनुमान भक्त मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का जाप करते हैं. शक्ति और साहस का प्रतिक माने जाने वाले भगवान हनुमान की इस चालीसा में 3 दोहे और 40 चौपाई लिखी गई हैं. सिर्फ मंगलवार ही नहीं बल्कि किसी भी दिन लोग अपने मन से भय को भगाने के लिए हनुमान चालीसा की कुछ चौपाई पढ़ने लग जाते हैं. जिसमें से सबसे प्रसिद्ध है पहली चौपाई 'जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर'.
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आज यहां आपको इसी हनुमान चालीसा से जुड़े 5 फैक्ट्स के बारे में बता रहे हैं. 


1. हनुमान चालीसा की शुरूआत दो दोहे से होती जिनका पहला शब्द है 'श्रीगुरु', इसमें श्री का संदर्भ सीता माता है जिन्हें हनुमान जी अपना गुरु मानते थे. 

2. हनुमान चालीसा को कवि तुलसीदास ने लिखा. यह अवधि भाषा में लिखी में लिखी गई. कवि तुलसीदास अपने अंतिम दिनों तक वाराणसी में रहे. वहां उन्हीं के नाम का एक घाट भी है, जिसे नाम दिया गया 'तुलसी घाट'. यहीं रहकर तुलसीदास ने हनुमान मंदिर भी बनाया जिसका नाम है 'संकटमोचन मंदिर'. 

3. हनुमान चालीसा को सबसे पहले खुद भगवान हनुमान ने सुना. प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब तुलसीदास ने रामचरितमानस बोलना समाप्त किया तब तक सभी व्यक्ति वहां से जा चुके थे लेकिन एक बूढ़ा आदमी वहीं बैठा रहा. वो आदमी और कोई नहीं बल्कि खुद भगवान हनुमान थे. इस बात से तुलसीदास बहुत प्रसन्न हुए और तब उन्होंने हनुमान के सामने उनसे जुड़ी 40 चौपाई कह डाली.

4. हनुमान चालीसा में हनुमान के ऊपर 40 चौपाई लिखी गई हैं. यह चालीसा शब्द इन्हीं 40 अंक से मिला. 

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5. हनुमान चालीसा के पहले 10 चौपाई उनके शक्ति और ज्ञान का बखान करते हैं. 11 से 20 तक के चौपाई में उनके भगवान राम के बारे में कहा गया, जिसमें 11 से 15 तक चौपाई भगवान राम के भाई लक्ष्मण पर आधारित है. आखिर की चौपाई में तुलसीदास ने हनुमान जी की कृपा के बारे में कहा है. 

जानिए हनुमान जी को क्‍यों चढ़ाया जाता है सिंदूर?

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पौराण‍िक कथाएं
श्रीरामचरित मानस के अनुसार एक बार हनुमानजी ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखा. तब उनके मन में जिज्ञासा जागी कि माता मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं?

 यह सवाल उन्होंने माता सीता से पूछा. इसके जवाब में सीता ने कहा कि वे अपने स्वामी, पति श्रीराम की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं. शास्त्रों के अनुसार सुहागन स्त्री मांग में सिंदूर लगाती है तो उसके पति की आयु में वृद्धि होती है और वह हमेशा स्वस्थ रहते हैं.

 माता सीता का उत्तर सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि जब थोड़ा सा सिंदूर लगाने का इतना लाभ है तो वे पूरे शरीर पर सिंदूर लगाएंगे. इससे उनके स्वामी श्रीराम हमेशा के लिए अमर हो जाएंगे. यही सोचकर उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाना शुरू कर दिया. 

हनुमान जी पूरे शरीर पर सिंदूर पोतकर श्री राम के सामने सभा में प्रस्तुत हो गए. हनुमान जी का प्रेम देखकर श्री राम बहुत प्रसन्न हुए. अपने आराध्‍य को प्रसन्‍न देखकर हनुमान जी को सीता जी की बातों पर दृढ़ विश्वास हो गया.  तभी से बजरंग बली को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.

एक दूसरी कथा के मुताबिक जब लंका विजय के बाद भगवान राम पत्‍नी सीता संग अयोध्या वापस लौटे तो वानर सेना को विदाई दी गई. माता सीता ने बहुमूल्‍य मोतियों और हीरों से जड़ी माला अपने गले से उतारकर हनुमान जी को विदा करते वक्‍त पहना दी. माला के किसी भी मोती या हीरे में कहीं भी भगवान राम का नाम नहीं था. इसलिए हनुमान जी को कोई खुशी नहीं हुई. तब सीता जी ने अपने माथे पर लगा सिंदूर हनुमान जी के ललाट पर लगाया था. सीता जी ने हनुमान जी से कहा था कि इससे अधिक महत्व की कोई वस्तु उनके पास नहीं है. तब से हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाने लगा.

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सिंदूर चढ़ाने की व‍िध‍ि
सबसे पहले हनुमान जी की प्रतिमा को स्‍नान कराएं. इसके बाद पूजा-सामग्री अर्पण करें. फिर मंत्र का उच्‍चारण करते हुए चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर या हनुमान जी की मूर्ति पर देसी घी लगाकर उस पर सिंदूर चढ़ा दें. 

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8.7.20

भगवान श्री कृष्ण के बारे में ये 21 बातें आपको जरूर जाननी चाहिए

जुलाई 08, 2020 0
भगवान श्री कृष्ण के बारे में ये 21 बातें आपको जरूर जाननी चाहिए

राधे राधे! नमस्कार क्या आप भी कृष्ण जी के भक्त है अगर है तो ये पोस्ट आपको जरूर पढ़नी चाहिए!

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देवों में सबसे सुंदरतम देव श्री कृष्ण के जीवन की कई बातें अनजानी और रहस्यमयी है। आइए जानें 20 अनजाने तथ्य..

1. भगवान् श्री कृष्ण की परदादी 'मारिषा' व सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) 'नाग' जनजाति की थीं।

2. भगवान श्री कृष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं।

3. भगवान् श्री कृष्ण अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी द्वारिका में 6 महीने से अधिक नहीं रहे।

4. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी औपचारिक शिक्षा उज्जैन के संदीपनी आश्रम में मात्र कुछ महीनों में पूरी कर ली थी।

5. ऐसा माना जाता है कि घोर अंगिरस अर्थात नेमिनाथ के यहां रहकर भी उन्होंने साधना की थी।

6. भगवान् श्री कृष्ण के खड्ग का नाम नंदक, गदा का नाम कौमौदकी और शंख का नाम पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था।
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7. भगवान् श्री कृष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं।

8.भगवान् श्री कृष्ण के धनुष का नाम शारंग व मुख्य आयुध चक्र का नाम सुदर्शन था। वह लौकिक, दिव्यास्त्र व देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र ( शिव, कॄष्ण और अर्जुन के पास थे) और प्रस्वपास्त्र ( शिव, वसुगण, भीष्म और कृष्ण के पास थे)।

9. भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का वर्णन महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण व भागवतपुराण में नहीं है। उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद व प्रचलित जनश्रुतियों में रहा है।

10. जैन परंपरा के मुताबिक, भगवान श्री कॄष्ण के चचेरे भाई तीर्थंकर नेमिनाथ थे जो हिंदू परंपरा में घोर अंगिरस के नाम से प्रसिद्ध हैं।

11. प्रचलित अनुश्रुतियों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास का आरंभ भी उन्हीं ने किया था।

12. कलारीपट्टु का प्रथम आचार्य कृष्ण को माना जाता है। इसी कारण नारायणी सेना भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी।

13. भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम जैत्र था और उनके सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था। उनके घोड़ों (अश्वों) के नाम थे शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक।

14. भगवान श्री कृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी।

15. भगवान श्री कृष्ण की मांसपेशियां मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जातीं थीं, इसलिए सामान्यतः लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था ठीक ऐसे ही लक्ष्ण कर्ण व द्रौपदी के शरीर में देखने को मिलते थे।
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16. जनसामान्य में यह भ्रांति स्थापित है कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, परंतु वास्तव में कृष्ण इस विधा में भी सर्वश्रेष्ठ थे और ऐसा सिद्ध हुआ मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में जिसकी प्रतियोगिता द्रौपदी स्वयंवर के ही समान परंतु और कठिन थी।

17. यहां कर्ण व अर्जुन दोंनों असफल हो गए और तब श्री कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की, जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं।

18. भगवान् श्री युद्ध कृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था, परंतु इनमे तीन सर्वाधिक भयंकर थे। 1- महाभारत, 2- जरासंध और कालयवन के विरुद्ध 3- नरकासुर के विरुद्ध

19. भगवान् श्री कृष्ण ने केवल 16 वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया।

20. भगवान् श्री कृष्ण ने असम में बाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था।

21. भगवान् श्री कृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद्व युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था, जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे। बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए।

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30.6.20

भूत-प्रेतों से डरना बंद कीजिये और पढ़िए ''श्री हनुमान चालीसा''

जून 30, 2020 0
भूत-प्रेतों से डरना बंद कीजिये और पढ़िए ''श्री हनुमान चालीसा''
श्री हनुमान चालीसा

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दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।